तेरे सिवा और कहाँ ........

जागना भी क़बूल है तेरी यादों में रात भर
तेरे एहसासों में जो सुकूं है दिलबर वो नींद में कहाँ।

बेसब्र चाह तुझे देखने की इस क़दर
जो बेचैनी तेरे तसव्वुर में सनम वो सबर् ए  दीदार में कहां।

तड़प मंज़ूर तेरी तिशनगी में कुछ ऐसी
जो लुत्फ़ तेरे दर्द ए इश्क़ में जाना वो आराम दवा में कहां

अश्क़ भी अपना लिए प्रीत ए जुदाई में इस क़दर
जो मज़ा तेरे इंतज़ार में सनम वो चंद लम्हों के मिलन में कहां।❤️❤️

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