गर जूनूं ए दिलबर है तो
सबर् ए वफ़ा भी सीखो
बस इक हासिल
वो सूरत प्यारी
मोहब्बत नहीं होती।

गर बोया है इक बीज
दिल ए ज़मीं तो
हिफ़ाज़त ए वफ़ा भी सीखो
ये बस ख़ुशबू तक पहरेदारी
मोहब्बत नहीं होती।

गर टूट कर ज्जब ए प्रीत
लाज़िम होना है तो
शिद्दत ए वफ़ा भी सीखो
ये जिस्म से लिपटी पहरेदारी
मोहब्बत नहीं होती।

अगर इश्क़ करो तो
आदाब ए वफ़ा भी सीखो
ये चंद दिनों की बेक़रारी
मोहब्बत नहीं होती।❤️❤️

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